राम बाप का यज्ञ में पुन: आगमन



  नए पार्ट के बारे में मुरली और अव्यक्त वाणी में आए महावाक्य:-

राम वाली आत्मा पुनः ज्ञान यज्ञ में अहमदाबाद के पालड़ी सेण्टर में ही आती है। उसका साकार तन अहमदाबाद में अलौकिक जन्म लेता है। अतः अव्यक्त बापदादा ने अहमदाबाद कोअल्लाह की नगरीकहा है। खुदा की इस बेहद खुदी के कारण ही इस नगरी का नाम अहं+दा+बाद अर्थात् जिसने सबको झुकाने के बाद अपना (सात्विक) अहं दिया हो- ऐसा अहमदाबाद नाम पड़ा है। जिस अहमदाबाद प्रभुपार्क, पालड़ी सेवाकेन्द्र के अलावा सभी सेण्टर्स बच्चों ने बनाए; परन्तु यज्ञ की धनराशि से ब्रह्मा बाबा द्वारा सिर्फ़ अहमदाबाद पालड़ी सेवाकेन्द्र बनता है।

गुजरात वाले कितने भाग्यवान हो! गुजरात में बापदादा ने (पहला) सेण्टर खोला है। गुजरात ने नहीं खोला है। इसलिए चाहते भी सहज ही सहयोग का फल निकलता ही रहेगा। आपको मेहनत नहीं करनी पड़ेगी। (.वा.ता. 12.12.83 पृ.45 आदि)

साकार ब्रह्मा के प्रेरणा से स्थापन हुआ है। गुजरात ने गुजरात को निमन्त्रण नहीं दिया, ब्रह्मा बाप ने गुजरात को खोला है। (.वा.ता.15.12.05 पृ.3 आदि)

(चेतन) अहमदाबाद को सभी से ज़्यादा सर्विस करनी है; क्योंकि अहमदाबाद सभी सेण्टर्स का बीजरूप है। बीज में ज़्यादा शक्ति होती है। खूब ललकार करो, जो गहरी नींद में सोए हुए भी जाग उठें। (.वा.ता. 24.1.70 पृ.190 मध्य)
सभी सेण्टर्स का बीज क्यों बोला है? क्योंकि सारे विश्व की बीजरूप आत्मा, जिस एक बीज से ये सारा जड़-जंगम, सारा संसार फैला है, वो मनुष्य-सृष्टि का बीज आदम/एडम/शंकर वहाँ से ज्ञान में निकलता है।

आगे जो मरे थे, फिर भी बड़े हो, कोई 20-25 के ही हुए होंगे। ज्ञान भी ले सकते हैं। (मु.ता.16.2.67 पृ.1 अंत) सन् 1967 की वाणी अनुसार सन् 1947 में जिसने शरीर छोड़ा, उनकी आयु 20 वर्ष और जिन्होंने सन् 1942 में शरीर छोड़ा, उनकी आयु 25 वर्ष हो गई थी। जिनमें से एक आत्मा तो सन् 1966 में ज्ञान में गई थी और एक आत्मा ज्ञान में आने वाली थी; इसलिए बोला- ज्ञान भी ले सकते हैं।

6.12.69 की अव्यक्तवाणी पृ.153 के आदि में आया है- “इस भट्ठी से हरेक का चेहरा चैतन्य म्युज़ियम बनकर निकले। ... इस चेहरे के म्युज़ियम में कौन-कौन-से चित्र फिट करेंगे? ... जैसे त्रिमूर्ति, लक्ष्मी-नारायण और सीढ़ी यह तीन मुख्य चित्र हैं ना! इनमें सारा ज्ञान जाता है। वैसे ही इस (बीजरूप) चेहरे के अन्दर यह चित्र अनादि फिट हैं। शिव की तीन मूर्ति में विशेष है मनुष्य-सृष्टि का बीज आदम/एडम/शंकर की आत्मा जो आदिनारायण बनती है और वही आत्मा जो ज्ञान की रोशनी में रत रहती है, उसीभा+रतके उत्थान और पतन की कहानी सीढ़ी में दिखाई है, उस एक में ही सारा ज्ञान है; इसलिए बोला इस चेहरे में यह चित्र अनादि फिट हैं


18 जनवरी, 1970 को माउण्ट आबू में अव्यक्त बापदादा से वह विशेष आत्मा मिलती है, तब अव्यक्त-वाणी में आता है कि “व्यक्त में भी अब भी सहारा है। जैसे पहले भी निमित्त बना हुआ साकार तन सहारा था, वैसे ही अब भी ड्रामा में निमित्त बने हुए साकार में सहारा है। (18 जनवरी, 1969 से) पहले भी निमित्त ही थे। अब भी निमित्त हैं। यह पूरा (एडवांस) परिवार का साकार सहारा बहुत श्रेष्ठ है। ....साकार अकेला नहीं है। प्रजापिता ब्रह्मा (है) तो उनके साथ (एडवांस) परिवार है।” (.वा.ता. 18.1.70 पृ.166 अंत) ब्रह्मा बाबा के शरीर छोड़ने के बाद बहुत बच्चे हिलने लगे, तब बाबा ने बोला- जो आदि यज्ञपिता प्रजापिता ब्रह्मा निमित्त थे, वो ही दुबारा साकार में अभी मौजूद हैं, जो उसी डाइमण्ड हॉल में मौजूद थे।

सन् 1971 में राम वाली आत्मा कुमारों की भट्ठी में सम्मिलित होती है, तब अव्यक्तवाणी में आता है- “कुमार जो चाहे सो कर सकते हैं।” (.वा.ता. 11.3.71 पृ.44 आदि) ये वरदान कोई साधारण सभी कुमारों के लिए नहीं बोला है; क्योंकि कुछ करने के लिए दृढ़ता की आवश्यकता होती है। ये बात उस एक ही कुमार के लिए बोला है, जिस कुमार की बातों का बार-बार विरोध किया जाता था, जो पूरे कौरव संप्रदाय के विपरीत था; जैसे बगुलों के बीच में एक हंस हो। बाकी कुमार तो ब्रह्माकुमारियों के पक्ष में ही थे।  कुमारों को क्या करना है? सेण्ट भी बनना है, इनोसेण्ट भी बनना है। (.वा.ता. 11.3.71 पृ.43 अंत) ... कुमारों का सदा प्योर और सतोगुणी रहने का यादगार कौन-सा है, मालूम है? सनत्कुमार। (.वा.ता. 11.3.71 पृ.41 मध्य) ब्रह्मा के बड़े पुत्र सनत्कुमार के द्वारा ही सनातन धर्म की स्थापना होती है। जैसे हर धर्म का नाम धर्मपिता के आधार पर पड़ता है, ऐसे ही हिन्दू धर्म कोई अलग से नहीं है, वास्तव में सनातन धर्म का ही नाम हिन्दू धर्म हो गया है। सनत्कुमार को शास्त्रों में चार मानस पुत्रों में छोटा और ज्ञान में बड़ा दिखाते हैं, उसी कुमार के लिए बोला है जो सनत्कुमार सनातन धर्म की स्थापना के निमित्त बनता है।

ब्राह्मणों की दुनिया में छोटा और बड़ा ज्ञान के अनुसार माना जाता है, रात्रि क्लास मु.ता.3.5.73 पृ.1 के मध्य में कहा है- “बड़े भाई को हमेशा बाप समान समझते हैं। यह भी बड़ा है। जैसे मम्मा भी बड़ी है। यह सारा ज्ञान के ऊपर है। जिसमें अधिक ज्ञान है, वह बड़ा ठहरा। भल शरीर में छोटा हो; परन्तु ज्ञान में तीखा है तो हम समझते हैं यह भविष्य पद में बड़ा (विश्वनाथ) बनने वाला है। ऐसे बड़ों का फिर रिगार्ड भी रखना चाहिए; क्योंकि ज्ञान में तीखे हैं।राम वाली आत्मा भी लास्ट में आती है, उससे पहले तो कई पुराने भाई-बहन थे; परन्तु उन सबसे भी वह तीखी हो जाती है।

एक वर्ष खादी का कपड़ा आदि पहना। गाँधी हो चला {सन् 1971 में राम वाली आत्मा की बात है कि खादी का पाजामा-कुर्ता खरीद कर पहना, कुमारों की भट्ठी में गया।} बाप बैठ समझाते हैं कि यह भी गाँधी का फॉलोअर बना था। इसने तो सब-कुछ अनुभव किया है। फर्स्ट सो लास्ट बन गया है। अब फिर फर्स्ट बनेगा। (मु.ता. 23.8.84 पृ.3 मध्यांत)

जो (आदि ना.) नम्बरवन पावन था, वही फिर नम्बर लास्ट पतित बना है। उनको ही अपना रथ बनाता हूँ। फर्स्ट सो लास्ट में आया है, फिर फर्स्ट में जाना है। (मु.ता. 21.5.68 पृ.2 अंत) [मु.ता. 11.6.69 पृ.2 अंत, पृ.3 आदि]

तुम ही पहले-2 आए थे। अभी लास्ट में भी तुम हो। फिर पहले-2 तुम्हीं मनुष्य से देवता बनने वाले हो। (मु.ता. 16.7.73 पृ.2 मध्यांत) {त्वमादिदेव: पुरुष: पुराण:...(गीता-11/38)}

ऐसे नहीं पहले आने वाले ही आगे जावेंगे। बाप कहते हैं पिछाड़ी में आने वालों को तख्त मिलता है तो तीखे हो जाते हैं। पुराने पीछे रह जाते हैं। ...... देरी से आने वालों को तीखा दौड़ने का शौक रहता है। पुराने जैसे कि पुरुषार्थ करते-2 थक जाते हैं। (मु.ता. 8.3.76 पृ.3 अंत)

पुराने-2 बच्चे कितने अच्छे थे, उनको माया ने हप कर लिया। ...समझ सकते हैं उनमें से फिर आएँगे। ज़रूर स्मृति आएगी कि हम बाप से पढ़ते थे। (मु.ता. 9.10.70 पृ.2 मध्य)

ब्राह्मण धर्म में तुम कितने जन्म लेते हो? कोई दो/तीन जन्म भी लेते हैं ना! (मु.ता. 12.3.69 पृ.3 मध्यांत)

ये सभी महावाक्य राम वाली आत्मा के लिए बोले हैं, जिसको शिवबाप ने अपना मुकर्रर रथ बनाया। वह फेल हो गया और शरीर छोड़ दिया तो समझ लिया गया कि वो आत्मा दुबारा नहीं सकती है; ये बात विधर्मी आत्माएँ ही सोचती हैं; क्योंकि वो समझती हैं पुनर्जन्म नहीं होता है; परन्तु ऐसे नहीं है। बाबा ने ही बताया- ब्राह्मण धर्म में ही कोई आत्मा 2 या 3 जन्म भी ले सकती है। तो वो ही आदि आत्मा पूर्वजन्म में रहे हुए अधूरे कार्यों को पूरा करने के लिए दुबारा जन्म लेकर आती है। ये सभी महावाक्य सन् 1968 से 76 तक की (रिवा.) वाणियों के हैं, जिस समय वह मुकर्रर रथ पुरुषार्थ की तीव्रता को पकड़ रहा था और जब उस स्टेज को प्राप्त कर लेता है तो सन् 1976 में उसकी प्रत्यक्षता के लिए बापदादा ने अव्यक्त वाणी में सन् 1976 कोबाप का प्रत्यक्षता वर्षबताया। सभी सोचते हैं जो पहले आते हैं, वो ही आगे जा सकते हैं; परन्तु ऐसे नहीं है। लास्ट में आने वाली आत्माएँ भी फ़ास्ट पुरुषार्थ कर आगे जा सकती हैं और ये बात अव्वल नंबर में राम वाली आत्मा के लिए ही लागू होती है, जो यज्ञ आरम्भ मंडली के अंत से 26 वर्ष के बाद ब्राह्मण परिवार में दुबारा जन्म लेकर आती है और सन् 1973 तक ही पुराने-2 B.ks से ज्ञान और योग में आगे चली जाती है।



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